लेखनी कहानी -03-Mar-2024
एक गिलहरी रोज़ मेरी छत पर आती है। वो कूट-कूट कर के दाना चुगकर चली जाती है।
जब भी डालता हूं दाने वो मुस्कुराती है। भले आदमी हो कह के गीत कोई गुनगुनाती है।
कभी-कभी मिलना ना हो तो दूसरे दिन इठलाती है, मौसम भी बदलते रंग-ढंग अपने वो ताली बजाती है।
बारिश में चली जाती है घर अपने, शायद उसे भी याद घर की आती है।
एक गिलहरी रोज़ मेरी छत पर आती है। वो कूट कूट कर के दाना चुगकर चली जाती है।
©® किरण
~प्रतियोगिता हेतु।
Varsha_Upadhyay
14-Mar-2024 07:34 PM
Nice
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Gunjan Kamal
05-Mar-2024 07:18 PM
👌👏
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Mohammed urooj khan
05-Mar-2024 01:45 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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